गठबंधन की राजनीति, दलित सम्मान ?भारतीय राजनीति की बारीकियां

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भारतीय राजनीति में गठबंधन बहुत महत्वपूर्ण हैं। दलित समाज के प्रति नेताओं की वचनबद्धता पर हमेशा बातें होती रही हैं। हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान ने काफी हलचल मचा दी है। कई नेताओं की चुप्पी और आगे की राजनीति पर असर डालने वाले विचारों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। चलो, इस मुद्दे और इसके संभावित असर को समझते हैं।
गठबंधन की राजनीति में बाबा साहब आंबेडकर और उनकी विचारधारा ?
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख लेखक हैं और समाजिक न्याय का प्रतीक माने जाते हैं। उनकी विरासत लाखों लोगों के दिलों में है। हाल ही में अमित शाह के एक बयान पर विपक्ष ने सरकार पर जमकर हमला किया है। विपक्ष दावा कर रहा है कि यह बयान बाबा साहब का अपमान है। इस मुद्दे पर विपक्षी दल काफी सक्रिय हैं, जबकि एनडीए के मुख्य दल चुप हैं। यह सब सवाल खड़े कर रहा है।
एनडीए के घटक दल और उनकी भूमिका गठबंधन की सरकार
एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के कई साथी दल नरेंद्र मोदी सरकार को सपोर्ट कर रहे हैं। लेकिन इस मामले में उनकी चुप्पी सवाल उठाती है। चलिए, कुछ मुख्य सहयोगी दलों की स्थिति को देखते हैं:
चंद्रबाबू नायडू (तेदेपा):
चंद्रबाबू नायडू के 16 सांसद नरेंद्र मोदी सरकार के लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन वे इस मामले में चुप हैं। उनके राज्य में दलितों के लिए 29 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। दलित वोटर्स की नाराजगी उनके लिए बड़ी चुनौती हो सकती है।
नीतीश कुमार (जदयू):
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को दलितों और मुसलमानों के समर्थन में दिखाते हैं। लेकिन अब उनकी चुप्पी ने विपक्ष को मौका दिया है। बिहार में 21% दलित वोटर्स हैं। विधानसभा चुनाव में ये वोट उनके लिए बहुत अहम हो सकते हैं।
चिराग पासवान (लोजपा):
चिराग पासवान दलित नेताओं में बड़े माने जाते हैं। उनके पास पांच सांसद हैं, और उनका समर्थन मोदी सरकार के लिए जरूरी है। अगर चिराग इस मुद्दे पर खुल कर बात करते हैं, तो सरकार को बड़ा झटका लग सकता है।
जीतन राम मांझी (हम):
जीतन राम मांझी महादलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह एनडीए के एकमात्र सांसद हैं। अगर वह नाराज होते हैं और गठबंधन छोड़ देते हैं, तो सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
एकनाथ शिंदे (शिवसेना-शिंदे गुट):
महाराष्ट्र के नेता एकनाथ शिंदे पहले से नाराज हैं। अगर वह एनडीए से बाहर जाते हैं, तो महाराष्ट्र के दलित वोटर्स पर इसका बड़ा असर पड़ेगा।
गठबंधन की मजबूती और सरकार का गणित
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास अब 240 सांसद हैं। एनडीए में कुल 293 सांसद हैं। अगर गठबंधन के कुछ साथी दल अलग हो जाते हैं, तो सरकार को बहुमत पाने में मुश्किल हो सकती है।
- जैसे अगर चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, और जीतन राम मांझी जैसे नेता अलग हो जाते हैं, तो एनडीए के सांसदों की संख्या 252 तक गिर सकती है। ये बहुमत से बहुत कम होगा।
- अगर इनमें से कुछ नेता एनडीए में रहते हैं, तब भी सरकार के लिए बहुमत पाना आसान नहीं होगा।
दलित वोटर्स की अहम भूमिका
- देशभर में दलित वोटर्स चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण हैं। भाजपा ने इन्हें अपनी तरफ लाने की कोशिश की है। लेकिन हालिया विवाद से उनका समर्थन कम हो सकता है।
- बिहार में नीतीश कुमार और चिराग पासवान के लिए दलित और मुस्लिम वोटर्स मिलकर सत्ता हासिल करने का बड़ा तरीका हैं।
- महाराष्ट्र में रामदास अठावले और एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं का दलित समुदाय पर अच्छा असर है।
आगे की राह और राजनीतिक भविष्य?
इस विवाद में सबसे बड़ा सवाल यह है कि एनडीए के नेता कब बोलेेंगे। बाबा साहब का अपमान जैसे मुद्दों पर उनकी प्रतिक्रियाएं और फैसले गठबंधन की ताकत और आने वाले चुनावों के नतीजों पर असर डालेंगे।
निष्कर्ष
भारतीय राजनीति में दलितों का सम्मान, गठबंधन और नेताओं की भूमिका बेहद जरूरी है। बाबा साहब आंबेडकर का अपमान सिर्फ एक बात नहीं है। यह सामाजिक न्याय और राजनीति की गंभीरता को दर्शाता है। आगे देखने वाली बात यह होगी कि एनडीए के साथी दल और दूसरे नेता इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं।