उपासना स्थल अधिनियम 1991:

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उपासना स्थल अधिनियम 1991: सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्देश और विवाद की गूंज

'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल अधिनियम 1991 (Places of Worship Act) को लेकर एक बड़ा आदेश दिया। इस निर्देश के मुताबिक, जब तक इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट अंतिम फैसला नहीं करता, तब तक देश की किसी भी अदालत में धार्मिक स्थलों से जुड़े नए मुकदमे दर्ज नहीं होंगे, और पहले से लंबित मामलों में कोई अंतिम आदेश नहीं पारित किया जाएगा।

यह मामला सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच के सामने आया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार से चार हफ्तों के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया है। इस फैसले ने राजनीतिक और सांप्रदायिक गलियारों में बहस को तेज कर दिया है।

Places of Worship Act 1991 Hind (Pooja Sthal Kanoon) Explained; What is it,  Supreme Court Seeks Narendra Modi Govt Reply | भास्कर एक्सप्लेनर: 1991 के पूजा  स्थल कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने

उपासना स्थल अधिनियम 1991 क्या है?

उपासना स्थल अधिनियम 1991 कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में, प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में पारित किया गया था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य 15 अगस्त 1947 को देश में मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति को यथावत बनाए रखना है।
इस कानून के तहत:

  • धार्मिक स्थलों की मूल संरचना में बदलाव पर रोक लगाई गई।
  • किसी भी पूजा स्थल की प्रकृति बदलने के लिए मुकदमा दायर करना गैरकानूनी है।
  • उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।

हालांकि, इस अधिनियम में अयोध्या विवाद को शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि उस समय यह मामला पहले से अदालत में विचाराधीन था।

विवादों की पृष्ठभूमि और बढ़ता टकराव

हाल के वर्षों में मंदिर-मस्जिद विवाद एक के बाद एक सुर्खियों में आते रहे हैं।

  • ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद
  • मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद
  • संबल मस्जिद विवाद, जहां सर्वे को लेकर हिंसा भड़क गई और चार लोगों की जान चली गई।

हिंदू पक्ष का दावा है कि कई मस्जिदें प्राचीन मंदिरों को तोड़कर बनाई गई हैं, जिनकी जांच की जानी चाहिए। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं हो सकती।

सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश

इस अधिनियम पर दर्ज याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए:

  • नए मुकदमे दर्ज करने पर रोक लगाई।
  • पहले से चल रहे मामलों में किसी भी अंतरिम या अंतिम आदेश को रोकने का आदेश दिया।
  • केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं को चार-चार सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने को कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अयोध्या विवाद का फैसला इस अधिनियम को मजबूत करने वाला आधार है। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि धर्म स्थलों से जुड़े विवादों से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने न पाए।

सियासी प्रतिक्रियाएं और संभावित परिणाम

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई है। विपक्ष का कहना है कि धार्मिक विवादों को हवा देकर देश में नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति की जा रही है।

  • बीजेपी पर आरोप है कि वह धार्मिक ध्रुवीकरण से राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करती है।
  • विपक्ष और एनडीए के सहयोगी दलों ने इस एक्ट का समर्थन किया है ताकि देश में सांप्रदायिक तनाव पर रोक लग सके।

अगर सुप्रीम कोर्ट इस अधिनियम को बरकरार रखता है, तो मंदिर-मस्जिद विवाद जैसे मामलों पर कानूनी रोक लग जाएगी। इससे बीजेपी के लिए चुनावी राजनीति में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

निष्कर्ष

उपासना स्थल अधिनियम 1991 का उद्देश्य देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्देश इस उद्देश्य को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है।

आने वाले महीनों में अदालत का फैसला देश की राजनीति और धार्मिक विवादों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
आपको यह रिपोर्ट कैसी लगी? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं।

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